- 11 Posts
- 33 Comments
मुझ दीपावली को मनाने का
क्यों रूप बदल है तुमने.
हर वर्ष जब मैं आती हूं
सोचती रहती हूँ मन में
जो वरदान हुआ करती थी
अभिशाप बना दिया है तुमने.
आदिकाल से आधुनिक कल तक
प्रकाशपर्व ही रही हूँ में
पर मेरे आयोजन के प्रति
कम हो रहा है उत्साह तुम में.
अमावस के घोर अन्धकार को
जो प्रकाश से तुम भागते थे
अब स्वयं ही प्रकाश से दूर
जुआ और शराब को चुना है तुम ने.
जो लक्ष्मी का पूजन होना था
दुरुपयोग किया है तुमने
सुन्दर चमकीले रूम को मेरे
विकृत कर दिया है तुम ने.
ज़रा इन दीपों से शिक्षा लो
जो अंतिम क्षण तक जलते रहकर
बलिदान कर अपने जीवन को
प्रकाश फैलाते हैं तम में.
इन दीपों से शिक्षा लेकर
समाज को नया प्रकाश तुम दो
जैसा रूम था पूर्व में मेरा
वैसा ही पुनः तुम बनवा दो
लज्जा आयेगी मुझे तुमपर
ऐंसा नहीं किया यदि तुमने
गणेश लक्ष्मी साक्षी हैं
शपथ दिलाती हूँ मैं तुमको
आज अभी से संकल्प यह लो तुम
बदलोगे इस घृणित जीवन को
जिसे घृणित किया है तुमने
जिसे विकृत किया है तुमने
मुझ दीपावली को मनाने का
क्यों रूप बदल दिया है तुमने.
क्यों रूप बदल दिया है तुमने..
——– संजीव आकांक्षी
Read Comments