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मैं सड़क हूँ

Akankshi
Akankshi
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मैं सड़क हूँ,
देखे हैं जिंदगी के मंजर कई,
सेवा में आपकी रहती हूँ लगी,
कभी होकर पुरानी,
कभी होकर नयी.

मोटर गाड़ियों में बैठकर,
जब आप जाते हैं,
अपने से नीचे वालों को,
जब शान दिखाते हैं,
है सोचा नहीं किसी ने,
गुजरी है क्या, दिल पर मेरे,
बस देखते हैं सब,
मैं हूँ पुरानी या,
मैं हूँ नयी.

कभी थूकते मुझपर हो,
कूड़ा डालते हो तो तुम,
दुर्घटना करते हो तुम ही,
पर नाम मेरा करते हो तुम,
जबकि
गलती होती है तुम्हारी,
और होती
मैं हूँ सही.

जो मानव मैं होनी है कठिन,
वह देखो
सहनशीलता मेरी,
समाज सुधारे और,
मानवता आये,
हो उसमें यदि कुछ,
प्रतिशत मेरी.

गर मैं कर दूं बगावत,
ऊपर भी उठ सकती हूँ मैं,
मानवता क्या समस्त विश्व को,
अस्त व्यस्त कर सकती हूँ मैं,
परन्तु
मैं ऐंसा करूंगी नहीं
क्योंकि
मैं सड़क हूँ,
देखे हैं जिंदगी के मंजर कई.

मानव की तरह,
कर्त्तव्य-विमूढ़ होकर,
नहीं करती हूँ मैं,
सही को गलत,
गलत को सही,
और
सेवा मैं आपकी,
रहती हूँ लगी,
कभी होकर पुरानी
कभी होकर नयी
क्योंकि
मैं सड़क हूँ
देखे हैं जिंदगी के मंजर कई.

——- संजीव आकांक्षी

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