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वो और ये

Akankshi
Akankshi
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वो सियासी है, मक्कार है, नहीं हिम्मत से नाता है.
वो अपने खंजर को दोस्तों पर ही आजमाता है…

रकीब बनकर उसके वो हरदिन पर कतरता है.
लेकिन ये है की होंसलों से उड़ता ही जाता है…

यह मोहब्बत की दीवानगी नहीं तो और क्या है.
तपती सरक पे नंगे पाँव ये हँसता खिलखिलाता है…

मोहब्बत की ख़ुशी दिल में है कितनी कोई न पूछे.
परेशां करते हैं दुश्मन ये फिर भी मुस्कुराता है…

एक बार बनके चाँद तू उसके आँगन में क्या आया.
हर वक्त ये आँखें बंद कर अब अँधेरा बनता है…

कुछ बातें दिलों पर कितना असर करती हैं.
ये बेजुबां है फिर भी नगमें गुनगुनाता है…

वो महाजन है गरीबों का लहू चूस लेता है.
ये बच्चों का पेट भरने को लहू बेच आता है…

मुफलिसी तकलीफों का इल्म हो नहीं सकता.
इतनी होशियारी से ये हंस के बातें बनता है…

वो दुश्मन हों मेरे होते रहें क्या फर्क पड़ता है.
मैं दोस्त हूँ बना रहूँ ये आकांक्षी ही बताता है…

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